लहर ने किया कहर
कहर मे पिया कोई जहर
किसी पे हुई ज़िंदगी महर
जहाँ खिलते थे कभी फूँल
वहाँ बची सिर्फ़ अब धूंल
धूंल में भी मदद को दिया हाथ
हाथ दें के परयों को कीया साथ
सागर मे उठी लहर
लहर ने किया कहर
कुदरत का था जहाँ खजाना
मौंत का हैं वहाँ अब नज़ारा
सागर ने खेला ऐसा ख़ेल
बनकर रहा सब धूंल का मेल
लहरो ने देकर अपना हाथ
लोगो को लिया साथ
सागर मे उठी लहर
लहर ने किया कहर
किसी के बिखरे सपने
किसी के बिछड़े अपने
सपनें में आए अपने
अपने पूछें सवाल
क्या दूं में उन्हे जवाब
कुदरत का जहाँ लेते लोग मज़ा
सागर ने दी उन्हें सज़ा
सागर मे उठी लहर
लहर ने किया कहर
2 comments:
nice...
What a Trimandous Poet you are..
Please dont stop to write your poem, otherwise world we lost one great poet.. please Keep it up.
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